भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करो मजबूत तुम खुद को किसे किस्मत बचाती है / स्मिता तिवारी बलिया
Kavita Kosh से
करो मजबूत तुम खुद को किसे किस्मत बचाती है
सुनो मेहनत पसीने में सनी भी मुस्कराती है।
यही इंसान के उत्थान का एक मन्त्र है साहब
जो टकराती समंदर चीर नौका पार जाती है।
सुनो देखो जरा तुम डूबकर के गौर फरमाओ
पिसी हो जो सलीके से हिना वो रंग लाती है।
उठो दौड़ो खड़े होके कभी जो गिर भी जाते हो
सदा गिरकर सम्भलने से सफलता हाँथ आती है।
चलो ए 'स्मिता' अब तुम यहाँ चलना ही जीवन है
न माने हार जो उससे नियति भी हार जाती है।