Last modified on 29 जनवरी 2018, at 18:18

कर्म-मथानी से / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

छोटी-छोटी बातों में मत
धीरज खोया कर
अपने सुख की चाहत में मत
ऑंख बिघोया कर

कॉंटों वाली डगर मिली है
तुझे विरासत में
सुख की किरणें छिपी हुई हैं
तेरे आगत में
देख यहॉं पर खाई पर्वत
सब दर्दीले
कदम कदम पर लोग मिलंेगे
तुझको दर्पीले
कुण्ठाओं का बोझ न अपने
मन पर ढ़ोया कर

बेमानी की लाख दुहाई
देंगे जग वाले
सुनने से पहले जड़ लेना
कानों पर ताले
मुश्किल से दो चार मिलेंगे
तुझको लाखों में करूणा तुझे दिखाई देगी
उनकी ऑंखों में
अपने दृग जल से तू उनके
पग को धोया कर

कट जायेगी रात,
सबेरा निश्चित आयेगा
जो जितनी मेहनत करता फल उतना पायेगा
समय चुनौती देगा तुझको
आकर लड़ने की
तभी मिलेंगी नई दिशायें
आगे बड़ने की
मन के धागे में आशा के
मोती पोया कर

बीज वपन कर मन में
धीरज, साहस, दृढ़ता के
छट जायेंगे, बादल मन से
संशय जड़ता के
सबको सुख दे, दुनिया आगे
पीछे घूमेगी
मंजिल तेरे चरणों को आकर चूमेंगी
कर्म मथानी से सपनो को
रोज बिलोया का