कर्म अपावन जौं शठ के, तब प्रेमिल पाठ उसे न पढावौं।
धर्म यही कहता द्रुत ही, असि हस्त धरो खल सीस उडावौं।
क्रोध वरेण्य सदा तबलौं, जबलौं रण दुष्ट न मार गिरावौं।
दानवता बिन नाश किये, चित में क्षण कोमलता न बसावौं।
कर्म अपावन जौं शठ के, तब प्रेमिल पाठ उसे न पढावौं।
धर्म यही कहता द्रुत ही, असि हस्त धरो खल सीस उडावौं।
क्रोध वरेण्य सदा तबलौं, जबलौं रण दुष्ट न मार गिरावौं।
दानवता बिन नाश किये, चित में क्षण कोमलता न बसावौं।