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कर्म की भाषा / त्रिलोचन

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|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
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{{KKCatKavita}}<poem>
रात ढली, ढुलका बिछौने पर,
 
प्रश्न किसी ने किया,
 
तू ने काम क्या किया
 
नींद पास आ गई थी
 
देखा कोई और है
 
लौट गई
 
मैं ने कहा, भाई, तुम कौन हो.
 आओ. बैठो. सुनो.आओ। बैठो। सुनो।
विजन में जैसे व्यर्थ किसी को पुकारा हो,
 
ध्वनि उठी, गगन में डूब गई
 
मैंने व्यर्थ आशा की,
 व्यर्थ ही प्रतीक्षा की.की।
सोचा, यह कौन था,
 
प्रश्न किया,
 
उत्तर के लिए नहीं ठहरा
 
मन को किसी ने झकझोर दिया
 
तू ने पहचाना नहीं ?
 
यही महाकाल था
 
तुझ को जगा के गया
 
उत्तर जो देना हो
 
अब इस पृथिवी को दे
 कर्मों की भाषा में.में।</poem>
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