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कर जोर खड़ी गिरिजा ढिग राज दुलारी / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कर जोर खड़ी गिरिजा ढिंग राज दुलारी,
जगदंबे अंबे हिय की तुम जानन हारी।
कीन्हों न प्रगट तेइसें कारण बखान के,
कर देहू सफल सेवा, अब मातु हमारी।
कर जोर...
कह सके न शेष शारद महिमा अपार है,
बड़अगु पतिव्रत में जगलोक तुम्हारी।।
कर जोर...
कंचन कुंअरि सप्रेम विनय भाल कंठ से,
दीन्हीं असीस सिय को हंस शैल कुमारी।।
कर जोर...