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कर पाना यदि पत्र प्रवाहित / सरोज मिश्र

हाथ नया हाथों में लेकर,
शेष राह तय करना तब!
कर पाना यदि पत्र प्रवाहित,
चित्र दिये की लौ पर सब!

नयी कहानी लिख डाली कब,
नया पात्र कब गढ़ डाला!
मन की सुनते-सुनते तुमने,
डाल दिया कब उर पर ताला!
लेकिन रखना याद कि ठोकर,
लगे कभी यदि अन्तर पर,
रटा हुआ ये नाम न लेना, आह उठे अधरों पर जब!
हाथ नया हाथों में लेकर, शेष राह तय करना तब!

रंगमंच जीवन को तुमने,
कह डाला ये ठीक किया!
प्रश्न है किसने अभिनय में भी,
सचमुच अपना पात्र जिया!
नए कथानक में यदि सोंचो!
तुम भूले सम्वाद कभी
गिरता पर्दा तब पूछेगा, चलन नया सीखोगे कब!
हाथ नया हाथों में लेकर, शेष राह तय करना तब!

हाँ मुझको स्वीकार विरह की,
मिलन भूमिका होती है!
किन्तु सुना श्रद्धा के सम्मुख,
नियति क्रूर भी रोती है!
पढ़ कर मेरा गीत तुम्हारी,
भी यदि आंखे भर आयें,
बैठी रहना पास न कहना,
देर हुई चलती हूँ अब!
हाथ नया हाथों में लेकर, शेष राह तय करना तब!
कर पाना यदि पत्र प्रवाहित, चित्र दिये कि लौ पर सब!