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कर सोलह सिंगार सखी री / उर्मिल सत्यभूषण

कर सोलह सिंगार सखी री
साजन के घर जाना है
पीहर के दिन चार सखी री
पी घर असल ठिकाना है।
आँख में प्यार का अंजन घर ले
अवगुण छोड़ सगुण झोली भर ले
ले किरणों का हार सखी री।
रूठा सजन मनाना है
हाथ में मेंहदी पांव महावर
ओढ़ ले लाल सुहाग की चूनर
हो जा तू तैयार सखी री।
पवन हिंडोला आना है।
तू नदियां है वो सागर है
शांति का घर प्रेम नगर है
जाना है उस पार सखी री
सागर बीच माना है।
अपना आप तू कर दे अर्पण
उसके चरणों पर हो समर्पण
होगा बेड़ा पार सखी री
अपना आप मिटाना है
धरती और आकाश हिला है
ज्योति से प्रकाश मिला है
बंध गये बंदन वार सखी री
ज्योति ज्योत समाना है।