कलम कि नोंक पर चढकर
हर अन्यायी मुस्कुराता है
कच्ची देंह से रिसता खून
बेईमानी की जेब से बहता है
विकास का हर पन्ना सोता है
पक्ष क्या विपक्ष क्या
संसद की चारदिवारी में
चुपके चुपके हँसता है
किसानों के देह पर कफन ओढ़े
कॉपरेट दुनिया का चेहरा मुस्कराता है