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कलियाँ-कलियाँ कहि के नाऽही अईलें / दीपक शर्मा 'दीप'

कलियाँ-कलियाँ कहि के नाऽही अईलें मोरे बालम जी
दिनवा-रतिया, सँसिया दूभर कईलें मोरे बालम जी।

हरियर-हरियर रहल करेजवा-धरती तऽ ओ दिनवा हो
फेर न सुधिया लिहलें, 'बंजर' कईलें मोरे बालम जी।

डूबत रहलीं पकड़ि कलऽईया बाहर खीच बचऽवलें कि
छन भर नाही बीतल फिर से बोरऽलें मोरे बालम जी।

सुगना-सुगना कहि-कहि हमसे खूबय बात बनवलें जी
जाय बिदेसवा, मोर सवतिया धयिलें मोरे बालम जी।

कवनो गत तऽ नाही छोडलें, का-का पीर बतायीं हो
मंगरसूत कऽ पगहा धइ-धइ, मरलें मोरे बालम जी।

आध उमिरिया बीत गयल कि आध बचल बा रामा रे
आध-आध में पूर जिनिगिया खयिलें मोरे बालम जी।

मारय के ही रहल तऽ आखिर काहे जान बचऽयिले हो
काहे के फिर ओ दिन, हथवा धयिलें मोरे बालम जी?