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कल्पत रहिथे मन / पीसी लाल यादव

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आँखी म नींद नहीं दिल म नहीं चैन।
कल्पत रहिथे मन, सुने बर तोर बैन॥
तिहार-बार देखत सबे हर नाहकगे,
दुख-पीरा के मारे सुख बइरी बाँहकगे।
का करँव बता तहीं कटे न दिन-रैन?
कल्पत रहिथे मन, सुने बर तोर बैन।
टूट जही साँस तभो आस नई टूटे,
जीयत-मरत ले तोर बिस्वास नई टूटे।
जोहत हँव बाट तोर बइठे नाहर लैन
कल्पत रहिथे मन, सुने बर तोर बैन॥
महमई बिना जइसे फूल के मान नहीं

काया हे बिरथा जब तक ओमा परान नहीं
मंदरस बिना कोनो काम के न मैन।
कल्पत रहिथे मन, सुने बर तोर बैन।