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कल्प वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर से / गुलाब खंडेलवाल


तीसरा चर--
कल्प वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर से
देखा मैंने  ज्योति एक उतरी अम्बर से--
सद्य:जात दिवस-सी, क्षण में फिर क्या देखा!
मूर्ति चतुर्भुज बनी चमक कर वह द्युति-लेखा
सहसा मूर्ति चतुर्भुजी, छिपी गरुड़ की पाँख में
वामन एक खड़ा हुआ लिये कुशासन काँख में

(चर का प्रवेश)
चर-- 
सुरगुरु-सेव्य कमंडल बायें कर में , दहने  
घटज-दत्त मृगचर्म, पादुका नृग की पहने
उर उपवीत पुनीत, पीत पट चतुरानन का
कटि  में वसु मेखला, रोषमय भाव नयन का
छत्र देवपति का तना, मस्तक पर ढुलते चँवर
वामन एक खड़ा, प्रभो! दर्शन के हित द्वार पर