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"कल और आज / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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और आज
 
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ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं  
 
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तुम्‍हारे तंबू,
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छमका रही है पावस रानी
 
छमका रही है पावस रानी
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आ गई वापस जान
 
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिरायों के अंदर,
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दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,
और आज बिदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍म
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और आज विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेटकर अपने लाव-लश्‍कर।
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समेटकर अपने लाव-लश्कर।
 
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22:08, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण

अभी कल तक
गालियॉं देती तुम्‍हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थ‍ी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
धरती की कोख में
दुबके पेड़ थे मेंढक,
अभी कल तक
उदास और बदरंग था आसमान!

और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
तम्हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरो की शहनाई अविराम,
और आज
ज़ोरों से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,
और आज विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेटकर अपने लाव-लश्कर।