http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4_/_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5&feed=atom&action=historyकल की बात / बोधिसत्व - अवतरण इतिहास2024-03-29T04:42:20Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B2_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4_/_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5&diff=76004&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बोधिसत्व |संग्रह=ख़त्म नही होती बात / बोधिसत्व }} …2010-03-11T22:06:08Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बोधिसत्व |संग्रह=ख़त्म नही होती बात / बोधिसत्व }} …</p>
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|रचनाकार=बोधिसत्व<br />
|संग्रह=ख़त्म नही होती बात / बोधिसत्व<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
कल संझा की बात है<br />
ऐसी ही एक बात है.... <br />
कुछ उलझन से भर कर<br />
बैठा था बिल्डिंग की छत पर<br />
कुछ सोच रहा था ऐसे ही,<br />
मेरे बगल की बिल्डिंग की <br />
दूसरे तल्ले की एक खिड़की<br />
खुली हुई थी थोड़ी सी।<br />
जूड़ा बाँधे एक लड़की<br />
तलती थी कुछ चूल्हे पर<br />
तलती थी कुछ गाती थी<br />
गाती थी कुछ तलती थी<br />
तभी पीछे से आकर<br />
उसको बाहों में भर कर<br />
बोला उससे कुछ सहचर। <br />
पकड़-धकड़ में खुला जूड़ा<br />
हाथ बढ़ा बुझा चूल्हा<br />
चले गए दोनों भीतर<br />
बैठा रहा मैं छत पर....<br />
कल संझा की बात है...<br />
ऐसी ही एक बात है...<br />
</poem></div>अनिल जनविजय