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कविता-1 / भरत ओला


उनकी नजर में
कविता लिखना फैशन है
तभी तो
पड़ौस की ‘मेम’
लिख-लिख कविताएं
उड़ा देती है
पतंग की तरह

मैंने
कितनी बार
लिखनी चाही कविता
पर
नहीं लिखी गई

आज
जब कौए ने
ऊँट की टाकर<ref>घाव</ref> पर
मारी चोंच
तो पता नहीं
कहां से आकर
पसर गई कविता
उसके नंगे घावों पर

शब्दार्थ
<references/>