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कविता एक बनाएँ / रमेश तैलंग

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आओ, हम भी प्यारी-प्यारी
कविता एक बनाएँ।
जोडें़ तुक, शब्दों की माला
संुदर एक सजाएँ।

जिसमें अपना दुख-सुख
और कहानी बस अपनी हो।
कविता कैसी भी हो लेकिन
बानी बस अपनी हो।

सहज, सरल हो, नहीं चाहिए
भारी-भरकम मोटी।
हम छोटे-छोटे बच्चों की
कविता भी हो छोटी।

जिसे सीखना पड़े किसी से
क्या वह भी कविता है?
जिसे स्वयं आ जाए गाना
वह अच्छी कविता है।