Last modified on 11 अप्रैल 2008, at 22:21

कविता मेरे लिए / सुभाष नीरव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:21, 11 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = सुभाष नीरव }} कविता की बारीकियाँ कविता के सयाने ही जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता की बारीकियाँ

कविता के सयाने ही जाने।


इधर तो

जब भी लगा है कुछ

असंगत, पीड़ादायक

महसूस हुई है जब भी भीतर

कोई कचोट

कोई खरोंच

मचल उठी है कलम

कोरे काग़ज़ के लिए।


इतनी भर रही कोशिश

कि कलम कोरे काग़ज़ पर

धब्बे नहीं उकेरे

उकेरे ऐसे शब्द

जो सबको अपने से लगें।


शब्द जो बोलें तो बोलें

जीवन का सत्य

शब्द जो खोलें तो खोलें

जीवन के गहन अर्थ।


शब्द जो तिमिर में

रोशनी बन टिमटिमाएं

नफ़रत के इस कठिन दौर में

प्यार की राह दिखाएं।


अपने लिए तो

यही रहे कविता के माने

कविता की बारीकियाँ तो

कविता के सयाने ही जाने।