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कविता - 9 / योगेश शर्मा

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वह कविताएँ लिखती थी...
प्रेम से भरी हुई,
इतना प्रेम कि,
वह शब्दों से बाहर निकल कर नाचता था।
एक पूरी सभ्यता का
सदियों से एकत्रित किया हुआ प्रेम।

अब शादी के बाद
जब वह कस्सी चलाती है,
तो प्रेम की कविताएँ लिखते समय
टूट जाती है चटाक से उसकी पैंसिल की नोक।

अल्हड़पन के चलते;
किवदन्तियों के अनुसार
उसने भी गढ़े सुहागरात के सपने।

आठ बटा आठ के इस बेरंग कमरे में
सोकर उसने जाना कि
इन हालात में
सुहागरात का अर्थ
एक अनजान आदमी के सामने
नँगा होने से ज्यादा
कुछ नही।