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कविता / राजू सारसर ‘राज’

ग्लैमर रो
लगाय’र तड़को
कींकर बण सकै
ओपती कविता !
उपमावां नैं
फूटरापौ मिलै
हिवड़ै सूं उपज्योड़ै
भावां नैं
सबदां रै सांचै
ढाळ’र सजा
देवण सूं कागद माथै
म्हूं मांड सकूं
सै सूं लूंठी कविता
फगत म्हारी ई
भासा में
जकी बण सकै
ग्लोबल
लोगां रै होठां माथै बैठ’र।