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कवित्त / शम्भुदान चारण

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पृथ्वी को गुरु है मान , जड़ता स्वरुप ताको ,
चकोर आकर अरु खावण आहार है
टक टक शब्द बीज लंग वाको पचा पल
पीला रंग चाल बारह , आंगुल पह्चान्यो है
दोय तो कहिजे इन्द्री , घ्राण अरु गुदा नाम
घ्राण ज्ञान इन्द्री गुदा कर्म कूँ ही जान्यो है
वास तो कलेजा माहि , व्दार गुदा उप चाल
समुख चले है श्वांस डेढ़ सौ बखान्यो है ||1||

जल को गुरु है विष्णु , शीतल स्वभाव ताको
अर्ध चक्र आकार अरु , मैथुन आहार है
चुल चुल शब्द बीज , रंग जाको चालीस पल
सफेद ही रंग चाल सोलह आंगुल जाणियो है
वास तो ललाट मांही , व्दार लिंग उप चाल ,
नीचे कूँ चले है श्वांस एकाविसी जन्यो है
दोय तो कहिजे इन्द्री जिभ्या अरु लिंग जाण
जिभ्या ज्ञान इन्द्री, लिंग कर्म ही कैवायो है ||2||

गुरु शिव तेज ही का , स्वभाव प्रज्वलित ,
त्रिकोण आकार अरु रूप ही आहार है
भूक भूक शब्द टेम है तीस पल
लाल रंग चाल , चार आंगुल पह्चान्यो है
दोय तो कही जे इन्द्री पैर नेत्र उनही के
नेत्र ज्ञान इन्द्री , पैर कर्म को कवायो है
वास तो पीठ के मांही नेत्र व्दार उनही के
उप चाल ऊपर कूँ नब्बे श्वांस मान्यो है ||3||

वायु को गुरु है ब्रह्म चलित स्वभाव ताको
आकार ही गोल अरु गंध जूं आहार है
सी सी शब्द बीज यंग बीस पल हरा रंग ,
चाल आठ आंगुल , यह सही कर भाख्यो है
दोय तो कही जे इन्द्री , हाथ अरु त्वचा जाण
त्वचा ज्ञान इन्द्री हाथ कर्म को केवायो है
वास तो नाभि के मांही , व्दार नाक उपचाल,
तीरची चले है श्वांस साठ ही कहवायो है ||4||

आकाश को निरंजन गुरु शून्य स्वभाव है
आकार ही निराकार , शब्द जू आहार है
शब्द प्रतिधुनी वांको , बीज हंग दस पल
श्याम रंग चाल , अर्थ आंगुल हम जान्यो है
दोय तो कहिजे इन्द्री शोत्र वाक् उन्ही के ,
ज्ञान इन्द्री शोत्र वाक् कर्म को कैवायो है
वास तो सीस के मांही , व्दार कान उप चाल
न मालूम तीस श्वांस, शम्भू है ही बखान्यो ||5||