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कवि गोष्ठी में / चंद्र रेखा ढडवाल
द्विजेन्द्र द्विज
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हर कविता में
तुम थीं
चुप-चुप दबी-ढकी
तुम्हारी चोली पर उछली
होकर मुखर बहुत.