Last modified on 10 नवम्बर 2015, at 20:57

कश्तियों वाला सफर था और हम थे / सत्य मोहन वर्मा

कश्तियों वाला सफर था और हम थे
नाख़ुदाओं का भी दर था और हम थे

बारिशों का, बादलों का और बिजली का
बादबानों पर कहर था और हम थे

सोच में डूबे हुए रहते थे क्या करते
धड़ के ऊपर एक सर था और हम थे

शाम से तन्हाईयाँ आकर जकड़ती थीं
मुब्तला यादों से घर था और हम थे

घूमती थी ज़िन्दगी कश्कोल लेकर के
आब ओ दाना मुन्तज़र था और हम थे

थी बहुत दिल में उडानों की हवस
हाथ में तितली का पर था और हम थे.