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कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता है / डी. एम. मिश्र

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कश्ती में आ के तूफाँ साहिल तलाशता है
दुनिया को देने वाला, दुनिया से माँगता है।

चलने में ही मज़ा है चलता ही जा रहा हूँ
मंजिल के आगे मंजिल, मंजिल का क्या पता हैं।

इक रोज़ मान लोगे तुम ख़ुद-ब-खुद हकीकत
सबसे बड़ा वो इन्साँ जो प्यार बाँटता है।

सब कुछ दिया उसी का, दौलत भी सब उसी की
वो है ख़ुदा तो फिर क्या वो मुझसे चाहता है।

नादां समझ रहा है लोगों को ज्योतिषी वो
हाथों की लकीरों में किस्मत को बाँचता हैं।