भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कश्मीरनामा / अजय सहाब

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:46, 14 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय सहाब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिनारों से भरी वादी में कुछ पंडित भी रहते थे
वो जो दहशत से डर के अपनी दुनिया छोड़ आये हैं
वो मस्जिद से हुआ इक शोर कि सब छोड़ कर भागो
वहीँ घाटी में दिल अपना सिसकता छोड़ आये हैं
कई सदियों का रिश्ता था वहां झेलम के पानी से
उसे झेलम के साहिल पर तड़पता छोड़ आये हैं
जहाँ बस एक ही मज़हब को रहने की इजाज़त है
उसी कश्मीर में अपना शिवाला छोड़ आये हैं
जो इक तहज़ीब थी मिल जुल के हर पल साथ रहने की
उसे डल झील में रोता ,बिलखता छोड़ आये हैं
जहाँ केसर के रंगों से सहर आग़ाज़ होती थी
वहां बस खून के रंगों का धब्बा छोड़ आये हैं
जिसे टिक्कू<ref>एक कश्मीरी सरनेम</ref> बनाता था जिसे अब्दुल चलाता था
वही जलता हुआ अपना शिकारा छोड़ आये हैं
बहोत सुनते थे हम कश्मीर में साझा तमद्दुन<ref>संस्कृति</ref> है
वहीँ गुलमर्ग में घायल भरोसा छोड़ आये हैं
लगाए जा रहे थे जब वहां तकबीर<ref>अल्लाहु अकबर का नारा</ref> के नारे
किसी शिवलिंग के दीपों को बुझता छोड़ आये है

शब्दार्थ
<references/>