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कश्मीर-दो / राजेश कुमार व्यास

पहलगाम,
सोनमर्ग,
गुलमर्ग-
सभी हैं खाली-खाली-से।
उदास चेहरे लिए
खच्चरों के साथ
आगंतुकों की आस में
सूनी आंखे
ढूंढती हैं अपनों को।
औचक,
किसी को आया देख
झपट पड़ते हैं लोग।
जन्नत की सैर कराने
ज्यादा नहीं,
थोड़ा-सा ही
पाने की होड़
आने वालों को भी
डराती है एकबारगी।
पर-
समझते ही,
रोता है मन
अंदर ही अंदर
अपनों के दर्द से।
अपनों की आस में
चलती है इनकी सांस।
पर-
कब तक?