Changes

उनसे तेज़ाब पसीज रहा था
और मेरा चेहरा
लहूलुहान होता जा रहा था, 
जिस पेड़ की शाख पर
अपनी कमर टिकाई,
वह जमीन से उखड़कर
जड़हीन था, 
जिस पत्थर पर सुस्ताने बैठा
वह हवा में कंपकंपाते हुए तैर रहा था, 
जिस टूटते सितारे से
उर्ध्वमुख मन्नते मांग रहा था,
उसका निशाना सीधा मेरी ओर था, 
चलते-चलते थक-हारकर
जिस राहगीर की बांहों की बैसाखी थामी
किसी अपार शक्ति से
निस्तेज हुआ जा रहा हूँ,
सारी ऊर्जाएं मेरे ऊपर से बह जा रही हैंमेरा बल मेरी पकड़ से कश्मीर होता जा रहा है, 
मैं न तो कोई राष्ट्र बन पा रहा हूँ
न ही इसका कोई स्थिर राज्य.