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कस्तूरी मृग / सजीव सारथी

माना बड़ी शिद्दत से हुई है हासिल,
मगर देखो अभी तो आगे,
और भी है मंजिल,
माना बहुत सारों से तुम बेहतर हो,
मगर देखो यूँ तो अभी,
बहुतों से कमतर हो....

सुनो कामयाबी एक ऐसा चन्दन है,
जिससे लिपट कर हँसता है,
नाग अहंकार का,
उसक जहर चख कर तुम,
न भूल जाना,
रास्ता अपने प्यार का,
गर थक चुके हो सोचकर अपने बारे में,
तो सोचो कुछ संसार का

जिंदगी हो तुम्हारी, उस कस्तूरी मृग समान,
जो खुश्बू का भंवर,
समेटे खुद अपने अंदर,
ढूँढता है उसे उम्र भर, बन बन,
तुम भी ढूँढो इल्म की खुश्बू, मन मन,
मिलेगा तुम्हें –
हर बुत में एक देवता,
हर पत्थर में एक कारीगर,
हर बूँद में एक लहर,
हर जर्रे में एक आंधी,
हर खँडहर में एक कहर....

सूरज के रथ पर बैठकर,
जारी रखना मगर,
तुम अपना सफर....