http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%87_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A5%80_/_%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80&feed=atom&action=historyकस्बे वाली लड़की / दीपिका केशरी - अवतरण इतिहास2024-03-29T10:29:25Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%87_%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A5%80_/_%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=237468&oldid=prevAnupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2017-10-13T11:27:14Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=दीपिका केशरी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
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<poem><br />
प्रेम कविताएँ पढते हुए कस्बाई लडकियां<br />
बागी हो जाया करती हैं, <br />
वो खिड़की से भी यू कूदती हैं <br />
कि असली दुनिया में साबूत पहुंच जाती हैं<br />
और जब वही दुनिया बेरुखी से उसका हाथ दबोचती है, <br />
तब वो भागती हुई<br />
फिर से लौट आती है अपने बिस्तर पे<br />
जहां रखी थी उसने एक आधी पढ़ी कविता<br />
दो जोड़ी नजरें <br />
एक चश्मा<br />
चश्में के डब्बे के ऊपर चिपकी एक कत्थई बिंदी <br />
एक गहरे रंग का दुपट्टा<br />
अपने कानों की बालियां<br />
और न जाने क्या क्या ! <br />
लौट कर वो अपने डायरी में लिखती है<br />
प्रेम कविताएँ झूठी होती हैं <br />
साथ ही उस लड़की का किरदार भी झूठा है <br />
जो अक्खड़ हो<br />
एक बैग में खुद को समेट कर<br />
रोशनदान से दुनिया घूम आती है !<br />
</poem></div>Anupama Pathak