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कहँमाहि उपजल झालरी गुअबा / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कैसली और पान के उपजाने तथा इन्हें दीवार पर चित्रित करने का उल्लेख इस गीत में हुआ है, जो शुभ कार्यों में व्यवहृत होने वाला और मंगल-सूचक समझा जाता है। इसके अतिरिक्त दुलहन के द्वारा दुलहे से दाँत की ज्योति दिखलाने का भी अनुरोध है, जो उसकी सच्चरित्रता की जाँच का द्योतक है।

कहँमाहिं उपजल झालरी गुअबा<ref>गुच्छेदार कसैली</ref>, आहे कहँमाहिं डाँटरियो पान<ref>डंटीदार पान</ref> हे।
गेरुलिया<ref>गेंडुली</ref> चारो मुख लागल हे॥1॥
तिरहुत उपजल झालरी गुअबा, आहे गँगाहिं डाँटरियो पान हे।
गेरुलिया चारो मुख लागल हे॥2॥
आधा भीति<ref>भीत; दीवार</ref> लिखबै<ref>लिखूँगा</ref> झालरी गुअबा, अहे आधा भीति डाँटरियो पान हे।
गेरुलिया चारो मुख लागल हे॥3॥
ओहि पैसी सूते गेल नन्हुआ<ref>लड़के के लिए प्यार का संबोधन</ref> दुलहा बाबू, आहे बाबू देखै देही दाँतहुक<ref>दाँत का</ref> जोति<ref>ज्योति</ref> हे।
गेरुलिया चारो मुख लागल, बालम घर लब<ref>नया</ref> कोहबर हे॥4॥
हँसि पूछु बिहुँसी पूछु कनिया सोहबी<ref>स्त्री, सुहागिनी</ref> कैसे हमें देख देबऽ दाँतहुक जोती हे॥5॥
आगे धनि, तोरा घर माइ त बहिनी, जखनि जे देख देबऽ दाँतहुक जोती हे॥6॥
अहे धनि, तोर मोर लागल सनेह, गेरुलिया चारो मुख लागल हे॥7॥

शब्दार्थ
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