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कहते भैया / हरेराम बाजपेयी 'आश'

बहुत खराब हुआ करती है,
अरे गुलामी कहते भैया,
आजादी किस कदर रो रही,
यह तुमको बतलाएँ भैया।

स्वार्थ और लालच के चश्में
चढ़े सभी की आँखों भैया,
सारी दुनिया लगे अमावस,
अंधों की नगरी है भैया।

नगर पालिका बिन पालक के
है अनाथ-सी लगती भैया,
पंचायत भी परपंची हो गई
रोएँ गाँव के भोले भैया।
विधान सभाएँ विधा न माने
है स्वच्छंद विचरती भैया
कर्ममयी संसद की सीटें,
कृंदन करती रहतीं भैया।

विघटन के तूफान उठ रहे,
सारे हिन्दुस्तान में भैया,
धर्म-जाति के झण्डे ऊँचे,
करें तिरंगे का अपमान ऐ भैया।

लाशों के अम्बार लगे हैं,
गली-गाँव-नगरी में भैया,
मारे भैया, मरे भी भैया,
बेचे देश, खरीदे भैया।

रोटी महँगी, कपड़ा महंगा,
महँगा बहुत मकान है भैया,
हर वस्तु है पहुँच के बाहर
सस्ती सिर्फ़ जान है भैया।

हर सरकार कटोरा लेकर,
भीख माँग कर लाए भैया,
कब तक "आश" जियेंगे ऐसे,
कोई तो बतलाए भैया॥