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कहते “अब होती मुदित देख निर्जन में पृथु उरु उर-वर्धन / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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कहते “अब होती मुदित देख निर्जन में पृथु उरु उर-वर्धन।
लगता तरूणाई जीत रही हारता जा रहा है बचपन।
अब क्षण-क्षण मुकुर लिये कर तेरे रहते हैं श्रृंगार-निरत।
विस्मित पूछा करती सखियों से रहस-केलि-लीला-अभिमत।
अब अरूण अँगुलिया खींच-खींच करतीं आनन का अवगुण्ठन।
लगता कर दिया चरण-चंचलता मनसिज ने मन को अर्पण”।
आ जा अनुरागी प्राण! विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥111॥