भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:04, 21 मई 2010 का अवतरण
कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं
है और भी सौगा़त, मगर भूल रहे हैं
दुनिया ने तो कहा जो, उन्हें याद है सभी
दिल ने कही जो बात,, मगर भूल रहे हैं
इतना तो याद है कि मिले हम थे शाम को
कैसे कटी थी रात, मगर भूल रहे हैं
चल तो रहे हैं चाल बड़ी सूझ-बूझ से
उठने को है बिसात, मगर भूल रहे हैं
कहते हैं वे, 'गुलाब में रंगत तो है ज़रूर
अपनी है जो औक़ात मगर भूल रहे हैं'