भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं
है और भी सौगा़त, मगर भूल रहे हैं

दुनिया ने तो कहा जो, उन्हें याद है सभी
दिल ने कही जो बात,, मगर भूल रहे हैं

इतना तो याद है कि मिले हम थे शाम को
कैसे कटी थी रात, मगर भूल रहे हैं

चल तो रहे हैं चाल बड़ी सूझ-बूझ से
उठने को है बिसात, मगर भूल रहे हैं

कहते हैं वे, 'गुलाब में रंगत तो है ज़रूर
अपनी है जो औक़ात मगर भूल रहे हैं'