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कहमाँहि किसुन जी जलम लेलन / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहमाँहि किसुन<ref>कृष्ण जी</ref> जी जलम लेलन, कहमाँहि बाजत बधावा<ref>वर्द्धन वाद्य, मंगल-वाद्य</ref>
सुनहु जदुनन्नन<ref>यदुनन्दन</ref> हे।
मथुराहिं किसुनजी जलम लेलन, गोखुला<ref>गोकुल</ref> में बाजत बधावा,
सुनहु जदुनन्नन हे॥1॥
कयराहिं<ref>कदली को, केले को</ref> काटी-कुटी खँम्हवा<ref>स्तम्भ, खम्भा</ref> गड़ावल<ref>गड़वाया</ref> छोटे-मोटे
मँड़वा बनावल, सुनहु।
खरही<ref>खर, एक प्रकार की घास, मूँज</ref> काटी-कुटी<ref>काट-छाँटकर</ref> मड़वा छवायबइ<ref>छवाऊँगी</ref> मँड़वा में कलसा
धरयबइ<ref>धरवाऊँगी</ref> सुनहु॥2॥
ओकरा<ref>उसमें</ref> में भरबई<ref>भरूँगी</ref> गंगा पानी, ओकरा में धरबइ कसइलिया<ref>पू. गोफल, सुपारी</ref> सुनहु।
ओकरा में धरबइ पलबिया<ref>पल्लव</ref> ओकरा में धरबइ पन-फूलवा<ref>पान और फूल</ref> सुनहु॥3॥
बारबइ<ref>बालूँगी</ref> हम मानिक दियरा<ref>माणिक्य दीप</ref> झलमल करतइ<ref>करेगा</ref> दियरा, सुनहु जदुनन्नन हे।
मँड़वहिं रखबइ<ref>रखूँगी</ref> हरदिया, पूजबइ हम गउरी-गनेसवा<ref>गौरी-गणेश</ref> सुनहु जदुनन्नन हे॥4॥
उपरे<ref>ऊपर, स्वर्ग में</ref> अनंद पितर लोग, अब बंश बाढ़ल मोर, सुनहु जदुनन्नन हे।
मँड़वहिं हो गेल इँजोर<ref>प्रकाश</ref> सुनहु जदुनन्नन हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>