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कहाँ के हाथी घोड़ा कहाँ के बरिआत / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कहाँ के हाथी घोड़ा कहाँ के बरिआत, उड़त आबै<ref>आ रहा है</ref> निसान, आँहे<ref>अरे</ref> परभु हे।
बोलत आबे डमुरा<ref>डमरू</ref> आँहे परभु हे॥1॥
मोरँगऽ<ref>नेपाल का एक जिला</ref> के हाथी घोड़ा देस क<ref>देश का</ref> बरियात, बसहा चढ़ल आबे इसर<ref>ईश्वर</ref> महादेब हे।
गौआ के पीठि गोपाल, आँहे परभु हे॥2॥
ऊँची महल चढ़ि तिरियाहिं ताके, कते दूर आबे बरिआत आँहे परभु हे॥3॥
जबहि महादेव डेढ़ियाहिं<ref>ड्योढ़ी पर</ref> लागल, सखि सब मँगल गाबे आँहे परभु हे॥4॥
जबहि महादेव मँडुआहि<ref>मंडप पर</ref> लागल, जट्टा<ref>जटा; उलझे और आपस में चिपटे हुए लंबे बाल</ref> देलअ उड़ुऋ माइ<ref>झुकाया; लटकाया; फैला दिया; किसी चीज का सहारा लेकर रखना</ref> देलअ उड़ुमाइ<ref>झुकाया; लटकाया; फैला दिया; किसी चीज का सहारा लेकर रखना</ref> अँहे परभु हे।
बिरनी<ref>ततैया; बर्रे</ref> देलअ उधियाइ<ref>उड़ा दिया</ref> आँहे परभु हे॥5॥
गौरा लाइ<ref>लेकर; के लिए</ref> उड़बअ<ref>उड़ जाऊँगी</ref> गौरा लाइ बुड़बअ<ref>बुड़ जाऊँगी; मिट जाऊँगी; डूब जाऊँगी</ref>, गौरा लाइ खिरबअ<ref>चली जाऊँगी; छिप जाऊँगी</ref> पताल आँहे परभु हे॥6॥
बौरा<ref>पागल</ref> के हाथे हमैं गौरा ना बिहाइबअ<ref>विवाह करूँगी</ref>, गौरा मोरा रहतअ कुमार, आँहे परभु हे॥7॥
कोठा के ऊपर गौरा मिनती करे, सुनु सिव बचन हमार, आँहे परभु हे॥8॥
जराएक भसम उतारि देहअ, नहिरा के लोक<ref>लोग</ref> पतियाबे<ref>विश्वास करे</ref>, आँहे परभु हे॥9॥
भसम उतारि सिब मँडु आहि बैठलअ, भै गेलअ कंचा<ref>कच्चा; नवयुवक</ref> कुमा, आँहे परभु हे॥10॥

शब्दार्थ
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