भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ चले भैया / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सड़कों पर वाहन
फुटपाथ पर दुकानें
पैदल चलने वाले कहाँ चले भैया ?

बड़े-बड़े शहरों की
हालत तो देखो
धकियाने वालों की
आदत तो देखो
गिर-पड़ जाएँ तो फिर न सँभलें भैया ।

रिक्शों से सटे हुए
रिक्शे बाज़ार में
जाना आसान नहीं
रहा सड़क पार में,
अड़ियल टटू हैं सब, नहीं टलें भैया ।

कल भी स्कूल में
’लेट’ पहुँचना पड़ा,
सज़ा मिली टीचर से
मुर्गा बनना पड़ा
इससे अच्छा, घर से न निकलें भैया ।