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कहाँ छिपकर बैठे हो / सुरजन परोही
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कहाँ छिपकर बैठे हो प्रभु जी, जरा आजा पास हमारे
तेरे बिना तरस रहे हैं, ये दो नैन बेचारे
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
तूने अहिल्या को मुक्त किया
सबरी के बेर भी खा लिया
सूरदास को तार दिया, उनके तार बजाने में
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
गणिका की भक्ति अपार
कुबेर का भर दिया भंडार
हनुमान को कर दिया पार, उनका शीश झुकाने में
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
जब द्रोपदी का चीर हरण हुआ
रो-रो किया पुकार मन-ही-मन
तब कृष्ण का डोल गया आसन, न किया देर उनका चीर बढ़ाने में,
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में।