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कहाँ ना खुशी बा, कहाँ ना जलन बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

कहाँ ना खुशी बा, कहाँ ना जलन बा
खिलल फूल में खार के भी चुभन बा

अबे जेठ के लू चलल जग जरल हऽ
असाढे के आँसू से अब नम नयन बा

रचे गीत कोई, गजल चाहे कह ले
लगी दिल में तबहीं अगर बाँकपन बा

करी साधना जे, कबो सिद्धि पाईं
तपत सूर्य के ही जगत् में नमन बा

नदी में बढ़त जा रहल नाव सबके
विचारीं कि माकूल कतना पवन बा