भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कहाँ है ओ अनंत के वासी / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल  
 
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल  
|संग्रह=
+
|संग्रह= नहीं विराम लिया है  / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
कहाँ है ओ अनंत के वासी
+
<poem>
  
तू मन मे है फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी
+
कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
 +
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी
  
 +
प्रेम शक्ति के तार भले ही मैंने तुझ से बाँधे
 +
रह-रह कर उठ रहे विवादी सुर भी उनसे आधे
 +
नयनों के सम्मुख दिखती है मुझको अंध गुफा-सी
  
प्रेम शक्ति के तार भले ही मैंने तुझ से बांधे
+
कितनी बार परस तेरा मैंने मस्तक पर पाया
 +
कितनी बार डूबते मुझको तू तट पर ले आया
 +
फिर भी क्यों हटती न हटाये चिंता की गलफाँसी ?
  
रह रह कर उठ रहे विवादी सुर भी उनसे आधे
+
नियम नियामक दोनों तू नियमों का हो दृढ पालक
 +
पर न नियम क्या बने क्षमा के, भूल करे यदि बालक
 +
गिरते पड़ते भी जो तुझ तक आने का अभिलाषी ?
  
नयनों के सम्मुख दिखती है मुझको अंध गुफा सी
+
कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
 +
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी
 +
<poem>

07:11, 7 अगस्त 2009 का अवतरण


कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी

प्रेम शक्ति के तार भले ही मैंने तुझ से बाँधे
रह-रह कर उठ रहे विवादी सुर भी उनसे आधे
नयनों के सम्मुख दिखती है मुझको अंध गुफा-सी

कितनी बार परस तेरा मैंने मस्तक पर पाया
कितनी बार डूबते मुझको तू तट पर ले आया
फिर भी क्यों हटती न हटाये चिंता की गलफाँसी ?

नियम नियामक दोनों तू नियमों का हो दृढ पालक
पर न नियम क्या बने क्षमा के, भूल करे यदि बालक
गिरते पड़ते भी जो तुझ तक आने का अभिलाषी ?

कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी