भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ है ओ अनंत के वासी / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी

प्रेम शक्ति के तार भले ही मैंने तुझ से बाँधे
रह-रह कर उठ रहे विवादी सुर भी उनसे आधे
नयनों के सम्मुख दिखती है मुझको अंध गुफा-सी

कितनी बार परस तेरा मैंने मस्तक पर पाया
कितनी बार डूबते मुझको तू तट पर ले आया
फिर भी क्यों हटती न हटाये चिंता की गलफाँसी ?

नियम नियामक दोनों तू नियमों का हो दृढ पालक
पर न नियम क्या बने क्षमा के, भूल करे यदि बालक
गिरते पड़ते भी जो तुझ तक आने का अभिलाषी ?

कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?
तू मन मे हो फिर भी आँखे है दर्शन की प्यासी