नाचता रहा दिन-ब-दिन
अपनों की ही उँगलियों पर
उनके इशारों के अनुरूप / तृप्त करता रहा
उनकी लालसाएँ
हरदम मारकर अपनी इच्छाएँ
जन्म से ही मज़बूत अदृश्य धागों में बँधा
मैं आज तक बँधुआ हूँ,
और तुम!
कहाँ चले गये हो
मुक्तिदाता?
नाचता रहा दिन-ब-दिन
अपनों की ही उँगलियों पर
उनके इशारों के अनुरूप / तृप्त करता रहा
उनकी लालसाएँ
हरदम मारकर अपनी इच्छाएँ
जन्म से ही मज़बूत अदृश्य धागों में बँधा
मैं आज तक बँधुआ हूँ,
और तुम!
कहाँ चले गये हो
मुक्तिदाता?