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कहाँ हो / कुमार राहुल

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न क़ासिद न नामा न पैग़ाम, कहाँ हो
कर के बैठे हैं ख़ुतूत-ए-इंतजाम, कहाँ हो

कहाँ हो कि अरसा हुआ
खैर-ओ-आफियत के खत आये
तुम न सही तुम्हारी खुश्बू लिए
क़ासिदों के मातहत आये

कहाँ हो कि बेरफू बेदवा
इक चाक-सा सीना लिए
ज़ीना-ज़ीना उतरती है शब
सागर-ओ-मीना लिए

कहाँ हो कि उम्रें गुजरीं ग़म गुज़रे
जिंदगी होती रही जाया युहीं
बर्फ की तरह सफ़ेद एक जिस्म
रूहें छोड़ चली साया युहीं

कहाँ हो कि तन्हाई गाती है
शहना-ए-वक़्त पर नग्मा कोई
पढ़ती रहती हैं बेचैनियाँ
दिल के दरूँ कलमा कोई

कहाँ हो कि फ़िक्र के सीने में
एक ही चेहरा एक ही ख़याल
मुसलसल रखती है ज़िन्दगी
सवाल के बरअक्स कितने सवाल

कहाँ हो कि मोरिद-ए-तकसीर
हम रहें तो रहें कब तलक
तय नहीं हश्र का रोज़ कहो
हम जियें तो जियें कब तलक

कहाँ हो कि ना-दमीदा एक ख़्वाब
लेती हैं अंगड़ाईयाँ क्या करें
दिल में उठती हैं रह-रह के
आवाज़नुमां तन्हाईयाँ क्या करें...