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कहिबे को ब्यथा सुनिबे को हँसी / बोधा

कहिबे को ब्यथा सुनिबे को हँसी, को दया सुनि कै उर आनतु है।
अरु पीर घटै तजि धीर सखी, दु:ख को नहीं का पै बखानतु है॥

'कवि बोधा कहै में सवाद कहा, को हमारी कही पुनि मानतु है।
हमैं पूरी लगी कै अधूरी लगी, यह जीव हमारोई जानतु है॥