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कहीं इरादा रूपया है तो कहीं तरक़्क़ी है / डी. एम. मिश्र

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कहीं इरादा रूपया है तो कहीं तरक़्क़ी है
सेानवा बीच बजार लुट गयी चाँदी सबकी है।

साहब घुड़का चपरासी को डरता है क्यों बे
बेगम सलमा की मुर्ग़ी तो अपने घर की है।

कैंप लगाकर घूसमुक्त ऋण बाँटा दावे से
कर्ज़दार सिंह जेल पहुँचकर पीसे चक्की है।

टीए, डीए, माला, माइक, फ़ोटो, पब्लिसिटी
आगे साहब की ऊँची कुर्सी भी पक्की है।

अपने अंदर कभी झाँककर उसने क्या देखा
काट रहा है मजे से लेकिन फ़स़ल ये किसकी है।