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कहीं जाने का मन होता है / विनोद कुमार शुक्ल

कहीं जाने का मन होता है
तो पक्षी की तरह
कि संध्या तक लौट आएँ।
एक पक्षी की तरह जाने की दूरी!
सांध्य दिनों में कहीं नहीं जाता
परन्तु प्राण-पखेरू?