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कहीं पे धूप / दुष्यंत कुमार

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तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गए।<br><br>
लहू लुहान नज़रों का जिआया ज़िक्र आया तो<br>
शरीफ लोग उठे दूर जा के बैठ गए।<br><br>
ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है<br>
यहां बबूल के साये में आके बैठ गए। <br><br>