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कहीं मिल न जाय आदमी / राजकिशोर सिंह

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जाड़े की रात के
सुनसान वन में
भीऽ की गठरी लिए
भिऽारी के मन में
आयी एक बात क्षण में
कि कैसे जाऊँ घर
लग रहा है डर
डर जंगल का
डर अजगर का
डर शेर का
डर घने पेड़ का
मगर इसका हल है
इसके लिए
मुझमें बल है
क्योंकि
अजगर एक है
उसमें विवेक है

छेड़े बिना
छेड़ता नहीं वह
घेरे बिना
घेरता नहीं वह
और इस अंध्ेरी रात में
जाड़े की बरसात में
कहीं मिल जाय
कोई भूत
तो डरता नहीं
यह पफक्कर अवध्ूत
लेकिन डर है
कहीं मिल न जाय आदमी
कहीं दिऽ न जाय आदमी।