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कहें वे लाख हमारे दिलों में रहते हैं / विनय कुमार
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कहें वे लाख हमारे दिलों में रहते हैं।
हमें पता है कि राजा क़िलों में रहतें हैं।
लगी है आग मगर आग सोचती कब है
फ़सल के बीज भी जलते ज़िलों में रहते हैं।
शहर में घूमते हैं साँप आस्तीनों के
षरीफ़ ख़ौफ़ के मारे बिलों में रहते हैं।
डरें षबाब से दरिया के क्यों, पता है हमें
कि साज़िषों के भँवर साहिलों में रहते हैं।
हमें निकालने का हक़ है हम निकालेंगे
हमारे तेल तुम्हारे तिलों में रहते हैं।
सफ़र तिलिस्म है मंज़िल खुली हुई मुट्ठी
सफ़र के राज़ कहाँ मंज़िलों में रहते हैं।
ख़ुदा बचाए हमारे शहर के लोगों को
ज़हीन लोग जहाँ जाहिलों में रहते हैं।
इन्हें संभाल के रखना हिदायतों की तरह
उदास ख़्वाब है, टूटे दिलों में रहते हैं।