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कहो और तरह से / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन

जो बात जिस तरह से कही जा चुकी है
आज उसे और तरह से कहो।
कहो कि तुम प्यार करते हो;
लेकिन ऐसा झूठमूठ मत कहना।
प्यार करते-करते देखो
कि एक दिन रुलाई आती है या नहीं,
फिर दबी ज़बान में ख़ुद से ही कहो: और... और...

मुझे मालूम है
बहुत सारे दुःख जमा हो चुके हैं।
फिर भी, दुःख की बातें
उपेक्षा से बिखरा कर मत रखना
हँसते-मुसकराते हुए ख़ुद को प्यार करना
कहना कि अहा, रहने दो।
दुःख में तुम बहुत फबते हो
यह बात जो जानता है, वही जानता है!

लोगों ने जो बात
बार-बार चीख़कर कही है
उसे तुम्हें कहने की कोई ज़रूरत नहीं
ख़ामोशी से पलट दो, चुपके से उलट दो दान...
भीड़ के सिर पर सवार हो
जब रात दरवाज़े पर दस्तक दे
तुम हौले से मुसकराते हुए कहना --अच्छा चलता हूँ ...!