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कहो कैसे नव-वर्ष मनाऊँ / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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समय नहीं अनुकूल लगे
ॠतु शिशिर प्रतिकूल लगे
कहो कैसे नव-वर्ष मनाऊँ
कैसे अंतर्मन फूल खिलाऊँ।

जब राह ठिठुरते बच्चे हों
समय दीन का न अच्छे हों
जब सूरज भी मुख मोड़े हों
पैर जुराव न उसके जोड़े हों।

कहो कैसे नव वर्ष मनाऊँ
कैसे अंतर्मन फूल खिलाऊँ।

जब सर्द हवा का झोंकें हों,
बर्फ राह को रोकें हों ,
जब कोहरा दिन में छायें हों,
धूप नज़र न आये हों।

जब दिनकर पे अंधेरे हों ,
बच्चे भूखे उठते सबेरे हों,
जब कैद चिड़िया बसेरे हों,
कवि-मन सोचता अकेले हों ।

कहो कैसे नव वर्ष मनाऊँ,
कैसे अंतर्मन फूल खिलाऊँ।।