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कह न पाया यहाँ कोई अब तक / सुमन ढींगरा दुग्गल

कह न पाया यहाँ कोई अब तक
हम ने कोई ख़ता न की अब तक

अय ख़ुदा बस यूँ ही गुज़र जाये
जैसी गुज़री है ज़िंदगी अब तक

कितनी रंगीन हो गई दुनिया
हम ने छोड़ी न सादगी अब तक

जाने कल कौन याद आया था
मेरी आँखों में है नमी अब तक

हम कभी उन से कुछ न कह पाये
दिल की दिल में दबी रही अब तक

आरज़ू थी किसी से मिलने की
पर नहीं आई वो घड़ी अब तक

क्या हमारी तरह तुम्हारे भी
दिल में बाक़ी है बेकली अब तक

वो चराग़ ए वफ़ा ख़ुदा रक्खे
जिस से है दिल में रोशनी अब तक

नफरतें तेरी बेरुख़ी तेरी
देखते आये हैं यही अब तक

वो ख़ुदा ही न था 'सुमन' शायद
हम ने की जिस की बंदगी अब तक