Last modified on 11 अगस्त 2023, at 12:29

कह भी दूँ हाल-ए-दिल अगर, शायद / अमीता परसुराम मीता

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 11 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीता परशुराम मीता |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कह भी दूँ हाल-ए-दिल अगर, शायद
उनपे हो जाये कुछ असर, शायद

अब ज़माना है बेवफ़ाई का
सीख लें हम भी ये हुनर, शायद

बाद मुद्दत के ये ख़्याल आया
रास आया नहीं सफ़र, शायद

हम ही अब तक समझ नहीं पाये
कुछ तो कहती है वो नज़र, शायद

वैसे तो फ़ासला नहीं कोई
कश्मकश है, अगर, मगर, शायद

हर नज़ारे में उसका ही जलवा
तुमको आता नहीं नज़र शायद

अजनबी-अजनबी से चेहरे हैं 
ये नहीं है मिरा नगर शायद

नींद तारी1 है आसमानों पर
या दुआ में नहीं असर शायद 

अब कोई आरज़ू नहीं बाक़ी 
ख़त्म होता है ये सफ़र शायद

मौज दर मौज एक नशशा था
अब वो दरिया गया उतर शायद

ज़िन्दगी, अब तुझे सँवारे क्या 
कोशिशें सारी बेअसर शायद

इक जहां अजनबी रहा ‘मीता’
इक जहां मुझसे बाखबर, शायद

1. छाया हुआ